अटल उत्कृष्ट विद्यालय खोलना सरकार की तुगलकी नीति।
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उत्तराखंड क्रांति दल के पूर्व केंद्रीय प्रवक्ता विजय कुमार बौडाई ने उत्तराखंड की भाजपा सरकार को जमकर कोसा।
बौडाई ने कहा कि राज्य में सत्ताधारी भाजपा सरकार शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर कभी भी संवेदनशील नहीं रही है। किसी भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था उस राज्य का आईना होती है। शिक्षा राज्य वासियों के समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण कारक होता है, लेकिन भाजपा सरकार ने सबसे अहम एवं जीवन के आति सम्वेदनशील विषय की लगातार उपेक्षा की है, जिस कारण आज सरकार के एजेंड में खनन एवं शराब महत्वपूर्ण विषय हैं जबकि शिक्षा गौण विषय रहा है।
लगभग साढे 4 वर्ष इस सरकार को होने को है ,तथा अंतिम चुनावी वर्ष है, इसमें एक नई शिक्षा व्यवस्था प्रयोग के तौर पर भाजपा भाजपा सरकार आजमा रही है। राज्य में 190 अटल उत्कृष्ट विद्यालय उत्कृष्ट विद्यालय सीबीएसई बोर्ड के माध्यम से खोलने की तैयारी में है। क्यों आज अंतिम चुनावी वर्ष में इस तरह की जरूरत आन पड़ी है? क्या इसकी तैयारी प्रथम व द्वितीय वर्ष में नहीं की जा सकती थी ?यह सरकार का नकारा पन को दर्शाता है। लेकिन इस बात की समझ सरकार को नही है। यह व्यवस्था विना व्यापक विचार विमर्श केअमल में लाई जा रही है , जोकि बिल्कुल भी व्यवहारिक नही है। अच्छा होता पहले सरकार कुछ शिक्षा विदों, प्रबुद्ध नागरिको, पूर्व प्रधानाचार्य एवं शिक्षकों से विचार विमर्श कर एक ठोस एवं व्यवहारिक व्यवस्था को बनाती लेकिन ऐसा न करना सरकार की कार्यकुशलता में नितांत अभाव को दर्शाता है। उत्तराखंड राज्य अपने बोर्ड के स्थान पर सीबीएसई बोर्ड को प्रमुखता दे रहा है। इसका मतलब अपना उत्तराखंड बोर्ड सही शिक्षा देने में फिसड्डी है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक राज्य में छात्रों को असमान शिक्षा प्रदान की जा रही है। कुछ बच्चों को अच्छी शिक्षा तथा कुछ को पुराने हाल पर छोड़ दिया जाना क्या मूलभूत अधिकारों का हनन नहीं है ? आखिर सरकार क्यों सीबीएसई बोर्ड को बढ़िया तथा अपने राज्य के बोर्ड को नकारा साबित कर रही है। अटल उत्कृष्ट विद्यालय में कक्षा 6 से बारहवीं तक अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था चालू की जानी है जबकि बच्चा कक्षा 5 तक के अपने बोर्ड से पास होकर आएगा जहां प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था बहुत ही खराब स्थिति में है। कैसे कक्षा 6 में आकर बच्चा अंग्रेजी शिक्षा पाठ्यक्रम को समझ सकेगा? और यदि इस व्यवस्था को लागू करना ही था ,क्यों नहीं पहली कक्षा से ही से ही इस पाठ्यक्रम को लागू किया जाता है? लेकिन इस बात की समझ सरकार को नहीं है। यह बिना व्यापक विचार विमर्श के लिया गया फैसला है जो कि बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं है तथा एक तुगलकी फैसला है। सरकार की अदूरदर्शिता एवं हठधर्मिता बच्चों के साथ खिलवाड़ कर रही है जो कि बहुत ही निंदनीय एवं नौनिहालों के भविष्य के साथ खेलना है। वर्त्तमान समय में सभी लोग कोविड के कारण एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं जिसमे एक नई व्यवस्था को चालू करना कोई विवेकपूर्ण कार्य नही है, साथ ही अब एक नई नीति की शुरुआत के लिए भी इस सरकार के पास समय नही बचा है, मात्र पांच महीने बचे हैं, इसलिए सरकार को इस अव्यावहारिक शिक्षा व्यवस्था को न अपना कर अपने बोर्ड पर भरोसा करना चाहिए और उसी व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ एवं दुरुस्त करना चाहिए ताकि हमारे बच्चों को सही शिक्षा मिल सके।नया प्रयोग एक प्रकार से तुगलकी फैसला साबित होगा।
उत्तराखंड क्रांति दल मांग करता है कि सरकार बाहरी बोर्ड के स्थान पर अपने उत्तराखंड बोर्ड को तरजीह दें और जो कमियां हैं उन पर सुधार करें ,और इस तुगलकी शिक्षा नीति को बंद करें।