अपनी उपेक्षा को लेकर आहत पत्रकारों ने गठित की मूल निवासी पत्रकार एसोसिएशन।लडेंगे स्वाभिमान,सम्मान व हक की लड़ाई

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देहरादून। आज देहरादून माजरी माफी में उत्तराखंड के मूल निवासी पत्रकारों ने एक बैठक की जिसकी अध्यक्षता श्री एन. के. गुसाईं व संचालन नीतीश नौटियाल ने किया । इसमें वक्ताओं ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य बनने 21 वर्षों के बाद भी मूल भूत समस्याओं का समाधान नही हो पाया। आम जनमानस के साथ साथ राज्य के मूल निवासी पत्रकारों की समस्याओं के समाधान न होने से क्षुब्ध पत्रकारों ने *मूल निवासी पत्रकार एसोसिएशन* का गठन करने के निर्णय लिया है। राज्य निर्माण की अवधारणा ही मूल निवासियों को आगे बढने का मौका देना था पर राज्य निर्माण के बाद बाहरी राज्यों से आये लोगों ने सत्ता के निकट होने व सत्ता में नये लोगों के होने से अधिकारियों ने और कानूनों में तो उत्तर प्रदेश की नकल की परन्तु यहां के मूल नागरिकों के हितों के कानूनों को बदल कर ऐसा कानून बनाए जिससे बाहरी राज्यों से आये लोगों को लाभ मिले।जैसे मूल निवास प्रमाण पत्र के स्थान पर अधिवास बनाना। इसी प्रकार सरकार व शासन ने राज्य बनाने में अग्रणीय भूमिका निभाने वाले पत्रकारों व जनता को संरक्षण देने के लिए कोई कानूनी पहल नहीं की। बाहर से आये लोगों ने साम, दाम से मीडिया व सूचना विभाग पर अपना अपना कब्जा कर लिया। राज्य बनने के बाद राजधानी देहरादून व मैदानी शहरों में अखबारों की बाढ आ गयी, जो कि बाहरी लोगों के अधिक हैं। किसी-किसी ने तो परिवार के सभी व्यक्तियों के नाम पर अखबार निकाल लिए हैं और उन्हें मान्यता दिला कर सरकारी विज्ञापन डकार रहे हैं जबकि राज्य के मूल पत्रकारों के लिए एक अखबार चलाना भी मुश्किल हो रहा है। उनको विज्ञापन देने में कई प्रकार की अड़चनें डाली जाती हैं।
सरकार व शासन की इस उपेक्षा से आहत होकर उत्तराखण्ड के मूलनिवासी पत्रकारों ने अपने हितों की रक्षा के लिए “मूल निवासी पत्रकार एसोसिएशन “का गठन करने का निर्णय लिया है। अत: प्रदेश के मूल निवासी पत्रकारों संपादकों से अनुरोध है कि वे इस संगठन से जुड़कर इसे बल प्रदान करें।

विदित है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में पर्वतीय जनमानस के साथ साथ पत्रकारों ने *कलम व भौतिक दोनों रूप* से आंदोलन में हिस्सा लिया लेकिन राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के जनमानस की तरह ही यहाँ के पत्रकारों को भी लगभग हासिये पर डाल दिया गया, वर्तमान हालात यह है कि अन्य प्रांतों से राज्य गठन के उपरांत आये हुए प्रकाशकों ने कई संस्करण प्रकाशित किये है जबकि राज्य के मूल निवासियों का एक संस्करण होने के बावजूद भी आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है , जबकि कुछ लोगों के कई कई संकरण प्रकाशित किये जा रहें हैं। इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि मूल निवासी पत्रकारों व प्रकाशको के हित के लिए एसोसियेशन संघर्ष करेगा, पत्रकारों ने कहा कि मूल निवासी पत्रकारों को सरकारीआवास आवंटन किया जाय, राज्य या राज्य से बाहर भी उत्तराखंड के पत्रकारों को गेस्ट हाउस उपलब्ध करवाया जाए। पत्रकारों के पुत्र/पुत्री को प्राइवेट विद्यालयों में फीस में छूट दी जाय। राज्य निर्माण आंदोलन में सक्रिय रुप से भागीदारी करने वाले पत्रकारों को सम्मान पत्र व पेंशन दी जाय। संकटग्रस्त व अन्य समस्याओं से पीड़ित पत्रकारों को राज्य सरकार द्वारा स्थापित पत्रकार कल्याण कोष से सहायता की जाय। सूचना विभाग में बनने वाली विभिन्न समितियों में अध्यक्ष/सदस्य उसी पत्रकार को बनाया जाय जो राज्य का मूल निवासी हो। बैठक में प्रस्ताव रखा गया कि शीघ्र राज्य के मूल निवासी पत्रकारों का एक वृहद सम्मेलन करवाया जाएगा जिससे पत्रकारों व आमजनमानस की समस्याओं व उनके समाधान पर विचार विमर्श किया जयरग।
एसोसिएशन शीघ्र ही पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू करके बृहद स्तर पर राज्य व राज्य से बाहर भी उत्तराखंड के मूल निवासी पत्रकारों को एकजुट करके विधवत रूप से कार्य करेगा। इस अवसर पर जयदीप भट्ट, ललित बिष्ट, जय नारायण बहुगुणा, अशोक नेगी, मंजू उनियाल, चंद्रकला, संजू बिष्ट ,मंजू गुसाईं, प्रताप बिष्ट, अजय रावत सहित कई पत्रकार मौजूद थे।

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