केवल हरीश रावत ही क्यों 24 घंटे का धरना दे,पूर्व सीएम ने धरने के लिए कांग्रेस,भाजपा,उक्रांद सहित सभी दलों को दिया निमंत्रण

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कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि
उत्तराखंड भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की इस बात से मैं पूर्णतः सहमत हूं कि बेटियां राज्य का सामूहिक स्वाभिमान हैं, तो उस पर केवल हरीश रावत ही क्यों 24 घंटे का धरना दे? मैं निमंत्रण देता हूं कि भाजपा का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व, कांग्रेस पार्टी का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व तथा उक्रांद, कम्युनिस्ट पार्टियां, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का नेतृत्व भी इस भावनात्मक एकजुट में शामिल होना चाहिए। मैं पहले 23 दिसंबर, 2022 को अपराह्न 12 बजे से 24 दिसंबर 12 बजे तक गांधी पार्क में धरना देने जा रहा था। भाजपा सहित सभी दलों का राजनीतिक पक्ष इस धरने में भागीदार बन सकें, अब मैं 26 दिसंबर को अपराह्न 12 बजे से 27 तारीख अपराह्न 12 बजे तक गांधी पार्क देहरादून में धरना दूंगा। मैं यहां तक तैयार हूं कि यदि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस धरने में आयेगा तो मैं उनके पीछे धरने में बैठूंगा।
अंकिता ने अपना बलिदान देकर हमें राज्य में 2016 से हो रहे अंधाधुंध अन्यंत्रित रिसोर्टीकरण को एक नई दृष्टि से देखने की चेतावनी दी है। लोग उत्तराखंड आध्यात्मिक, नैसर्गिक, पर्यावरणीय, साहसिक, सांस्कृतिक और पर्यटन के लिए आएं उसका स्वागत है, मगर दैहिक आनंद के लिए आने वाले लोग पूर्णतः न आएं, वनंत्रा रिजॉर्ट में वीआईपी को विशेष सेवा देने के लिए अंकिता पर डाला गया दबाव, एक खतरनाक हमारी संस्कृति परंपरा व अध्यात्म को नष्ट करने का अशुभ संकेत है।
ऋषिकेश से जुड़े ये सभी स्थान सीसीटीवी कैमरा की जद में होने चाहिए जहां विद्युत परियोजना हो, संत महात्मा गंगा आरती के लिए आते हों, विदेशी मेहमानों का जो प्रिय स्थल हो वहां सीसीटीवी कैमरा नहीं थे, ये हो ही नहीं सकता फिर क्यों वीआईपी के साथ आए बाउंसर और सुरक्षा कर्मी अभी तक चिन्हित नहीं हो पाए हैं? मुझे आश्चर्य है कि विधानसभा में सरकार के अधिकारिक बयान की रिजॉर्ट में वीआईपी नहीं बल्कि एक वीआईपी कक्ष है जहां आने वाला प्रत्येक व्यक्ति वीआईपी कहलाता है। वह अंकिता के हत्यारों को बचाव की यह ढाल सरकार ही उपलब्ध करवाने लग गई है। मैं तो एक जाता हुआ जोगी हूं जिसको आप सभी ने लताड़ा है। लेकिन फिर भी अपने अंतिम कर्तव्य के रूप में मैं, बेटी और बेटियों के स्वाभिमान के प्रश्न पर चुप नहीं बैठ सकता। यदि आज उत्तराखंड ने सामूहिक रूप से दैहिक सुख साधन उपलब्ध करवाने वाली भूमि के रूप में धकेलने की इन कोशिशों को दफन नहीं किया तो दर्शकों का संघर्ष भी हमारी पारिवारिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक संस्कृति को बर्बाद होने से बचा नहीं पाएगा।

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